रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे दूध बिलोने से पहले मां चक्की पीसती, और मैं घुमेड़े में आराम से सोता।
-तारीफ़ों में बंधी मां जिसे मैंने कभी सोते नहीं देखा।
आज जवान होने पर एक प्रश्न घुमड़ आया है-- पिसती चक्की थी या मां?
हिंदी समय में दिविक रमेश की रचनाएँ